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टिड्डी

                                         टिड्डी                     लेखक - नीरज 

जहां एक तरफ देश विश्वव्यापी महामारी से लड़ रहा है,उसी समय विभिन्न प्रकार की अन्य आपदाएं भी मनुष्य का पीछा नही छोड़ रही है,कही चक्रवात ,भूकंप, तूफान,और इसके बाद अब टिड्डियों का हमला,यह अभी कुछ महीनों पहले ही भारत मे राजस्थान, गुजरात, पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों से होता हुआ उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश के विभिन्न इलाकों में पहुँचा है।
प्रभावित राज्य की सरकारों को टिड्डी हमलों के विरुद्ध उच्च सतर्कता बरतने के लिये लगातार परामर्श दिया जा रहा है।
टिड्डियों के हमले की आशंका के मद्देनज़र दमकल वाहनों को पहले से ही तैयार किया गया था और इन कीटों को भगाने के लिये कीटनाशकों का गहन छिड़काव किया जा रहा है।
लेकिन यह वृहत स्तर पर नही है।

◆मुख्यतः
टिड्डी एक प्रकार के उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है जो विभिन्न प्रकार की फसलों को नुकसान पहुँचाती हैं।

●टिड्डियों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डियाँ (Schistocerca gregaria) सबसे खतरनाक और विनाशकारी मानी जाती हैं।

●आमतौर पर जुलाई-अक्तूबर के महीनों में इन्हें आसानी से देखा जा सकता है क्योंकि ये गर्मी और बारिश के मौसम में ही सक्रिय होती हैं।

●अच्छी बारिश और परिस्थितियाँ अनुकूल होने की स्थिति में ये तेज़ी से प्रजनन करती हैं। उल्लेखनीय है कि मात्र तीन महीनों की अवधि में इनकी संख्या 20 गुना तक बढ़ सकती है।

■भारत में टिड्डियों की प्रजाति■

भारत में टिड्डियों की निम्निखित चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं:

●रेगिस्तानी टिड्डी (Desert Locust)

●प्रवासी टिड्डी ( Migratory Locust)

●बॉम्बे टिड्डी (Bombay Locust)

●ट्री टिड्डी (Tree Locust)

★रेगिस्तानी टिड्डियों को दुनिया के सभी प्रवासी कीट प्रजातियों में सबसे खतरनाक माना जाता है। इससे लोगों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और आर्थिक विकास पर खतरा उत्पन्न होता है।

●ये व्यवहार बदलने की अपनी क्षमता में अपनी प्रजाति के अन्य कीड़ों से अलग होते हैं और लंबी दूरी तक पलायन करने के लिये बड़े-बड़े झुंडों का निर्माण करते हैं।

●सामान्य तौर पर ये प्रतिदिन 150 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं। साथ ही 40-80 मिलियन टिड्डियाँ 1 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में समायोजित हो सकती हैं।

●एक अकेली रेगिस्तानी मादा टिड्डी 90-80 दिन के जीवन चक्र के दौरान 60-80 अंडे देती है।
★वर्ष 1950 के बाद टिड्डियों का ऐसा हमला पहली बार देखने को मिल रहा है। दशकों पहले टिड्डी प्लेग (जब दो से अधिक निरंतर वर्षों के लिये टिड्डियों के झुंड का हमला होता है, तो इसे प्लेग कहा जाता है) के भयानक रूप को लंबे समय तक देखा गया था। इस बार, वे अच्छे मानसून के कारण लंबे समय तक इस क्षेत्र में मौज़ूद हैं।

★वर्ष 2019 में मानसून पश्चिमी भारत में समय से पहले (जुलाई के पहले सप्ताह से छह सप्ताह पहले) शुरू हुआ, विशेषकर टिड्डियों से प्रभावित क्षेत्रों में। यह सामान्य रूप से सितंबर/अक्टूबर माह के बजाय एक माह आगे नवंबर तक सक्रिय रहा। विस्तारित मानसून के कारण टिड्डी दल के लिये उत्कृष्ट प्रजनन की स्थितियाँ पैदा हुई। इसके साथ ही प्राकृतिक वनस्पति का भी उत्पादन हुआ, जिससे वे लंबे समय तक भोजन के लिये आश्रित रह सकती थीं।

■टिड्डियों और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध■
●रेगिस्तानी टिड्डे आमतौर पर अफ्रीका के निकट, पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम एशिया के अर्ध-शुष्क और शुष्क रेगिस्तान तक सीमित होते हैं, जो वार्षिक रूप से 200 मिमी से कम बारिश प्राप्त करते हैं।

●सामान्य जलवायुवीय परिस्थितियों में, टिड्डियों की संख्या प्राकृतिक मृत्यु दर या प्रवासन के माध्यम से घट जाती है।

●कुछ मौसम विज्ञानियों का मानना है कि टिड्डियों का इस प्रकार प्रजनन, जो कृषि कार्यों के लिये चिंता का विषय है, हिंद महासागर के गर्म होने का एक अप्रत्यक्ष परिणाम है।प
●पश्चिमी हिंद महासागर में सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव या अपेक्षाकृत अधिक तापमान पाया गया परिणामस्वरूप भारत समेत पूर्वी अफ्रीका में घनघोर वर्षा हुई
●वर्षा के कारण नम हुए अफ्रीकी रेगिस्तानों ने टिड्डियों के प्रजनन को बढ़ावा दिया और वर्षा की अनुकूल हवाओं द्वारा इन्हें भारत की ओर बढ़ने में सहायता मिली।
●इसके अतिरिक्त कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने हेतु जारी लॉकडाउन के कारण कीटनाशकों का बेहतर ढंग से छिड़काव न हो पाने के कारण भारत, पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान में नियमित समन्वय गतिविधियों को प्रभावित किया।

■टिड्डी चेतावनी संगठन■

(Locust Warning Organization-LWO)
●कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय (Directorate of Plant Protection, Quarantine & Storage) के अधीन आने वाला टिड्डी चेतावनी संगठन मुख्य रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में टिड्डियों की निगरानी, ​​सर्वेक्षण और नियंत्रण के लिये ज़िम्मेदार है।
●इस संगठन का प्रमुख कार्य निगरानी करना, सर्वेक्षण करना तथा टिड्डी दल के किसी भी प्रकार के हमले को नियंत्रित करना है।
●इस संगठन के दो मुख्यालय हैं-
●फरीदाबाद- यह संगठन के प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करता है।
●जोधपुर- यह संगठन के तकनीकी कार्यों की देखरेख करता है।

■बचाव की बेहतर तैयारी कैसे?■
●जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक घटना है, अफ्रीका महाद्वीप अपनी सुभेद्यता के कारण टिड्डी दल के हमले में विवश नज़र आ रहा है। अफ्रीकी हॉर्न देश मुख्य रूप से सामाजिक आर्थिक विकास के निम्न स्तर पर स्थित हैं। यहाँ शोध कार्य को बढ़ावा देना चाहिये ताकि टिड्डियों के हमले से पूर्व व्यापक बचाव किया जा सके। 
●रेगिस्तानी टिड्डी झुंडों को नियंत्रित करने के लिये ऑर्गोफॉस्फेट रसायनों (organophosphate chemicals) का छिड़काव किया जा सकता है। यह छिड़काव उन क्षेत्रों में करना चाहिये जहाँ कृषि कार्य नहीं किये जा रहे हैं क्योंकि यह एक विषाक्त रसायन है। 
●फसलों पर क्लोरपाइरीफॉक्स (Chlorpyri Fox) रसायन का छिड़काव किया जाना चाहिये क्योंकि यह विषाक्त रसायन नहीं है।
●टिड्डियों के द्वारा दिये गए अंडों को नष्ट कर देना चाहिये।
●कृषि क्षेत्र के आस-पास खाईयाँ (Trenches) खोद कर अपरिपक्व टिड्डियों को जल और केरोसीन के मिश्रण में गिराया जा सकता है।
●ड्रोन आदि का प्रयोग कर उनके प्रजनन स्थलों पर कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिये।

●टिड्डी दल का समूह जब भी आकाश में  दिखाई पड़े तो उनको उतरने से रोकने के लिए तुरंत अपने खेत के आस-पास मौजूद घास - फूस का उपयोग करके धुआं करना चाहिए अथवा आग जलाना चाहिए जिससे टिड्डी दल आपके खेत में ना बैठकर आगे निकल जाएगा।
●टिड्डी दल दिखाई देते ही ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से आवाज कर उनकों अपने खेत पर बैठने न दें। अपने खेतों मे पटाखे फोड़कर, थाली बजाकर, ढोल- नगाड़े बजाकर आवाज करें, टैक्टर के साइलेसंर को निकाल कर भी तेज ध्वनि कर सकते हैं। क्योंकि एक डरपोक स्वभाव का कीट होता है अतः तेज आवाज से डरकर आपके फसल व पेड़ पौधों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा पायेगा। इनको उस क्षेत्र से ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से हटाने या भगाने के लिए भोर का समय सवसे ज्यादा उपयुक्त होता है।
●प्रकाश प्रपंच लगाकर एकत्रित करके नष्ट कर सकते हैं। 
● कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर के टिड्डी को तथा उनके अंडों को नष्ट किया जा सकता है।

लेखक - नीरज कुमार मौर्य।                                          प्रकाशक
कृषि छात्र                                                                सुधांशु सिंह

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Acharya Narendra Deva University of Agriculture & Technology, Kumarganj Ayodhya Name - Sudhanshu Singh Id - A-11114/19 Msc ag (Genetics and Plant Breeding) Email- sudhanshu.singh0999@gmail.com Mo - 8795548235