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Showing posts from July, 2020

गाँव

                                -    मैं गाँव हूँ मैं वहीं गाँव हूँ जिसपर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे। मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है ! मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर असभ्यता और जाहिल गवाँर का भी आरोप है ! !  !   ! हाँ, मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़कर दूर बड़े-बड़े शहरों में चले गए।       जब मेरे बच्चे मुझे छोड़कर जाते हैं मैं रात भर सिसक सिसक कर रोता हूँ, फिरभी मरा नही। मन में एक आश लिए आज भी निर्निमेष पलकों से बांट जोहता हूँ शायद मेरे बच्चे आ जायँ, देखने की ललक में सोता भी नहीं हूँ लेकिन हाय! जो जहाँ गया वहीं का हो गया। मैं पूछना चाहता हूँ अपने उन सभी बच्चों से क्या मेरी इस दुर्दशा के जिम्मेदार तुम नहीं हो? अरे मैंने तो तुम्हे कमाने के लिए शहर भेजा था और तुम मुझे छोड़ शहर के ही हो गए। मेरा हक कहाँ है? क्या तुम्हारी कमाई से मुझे घर, मकान, बड़ा स्कूल, कालेज, इन्स्टीट्यूट, अस्पताल, आदि बनाने का अधिकार नहीं है? ये अधिकार मात्र शहर को ही क्यों? जब सारी कमाई शहर में दे दे रहे हो तो मैं कहाँ जाऊँ? मुझे मे

टिड्डी

                                          टिड्डी                     लेखक - नीरज  जहां एक तरफ देश विश्वव्यापी महामारी से लड़ रहा है,उसी समय विभिन्न प्रकार की अन्य आपदाएं भी मनुष्य का पीछा नही छोड़ रही है,कही चक्रवात ,भूकंप, तूफान,और इसके बाद अब टिड्डियों का हमला,यह अभी कुछ महीनों पहले ही भारत मे राजस्थान, गुजरात, पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों से होता हुआ उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश के विभिन्न इलाकों में पहुँचा है। प्रभावित राज्य की सरकारों को टिड्डी हमलों के विरुद्ध उच्च सतर्कता बरतने के लिये लगातार परामर्श दिया जा रहा है। टिड्डियों के हमले की आशंका के मद्देनज़र दमकल वाहनों को पहले से ही तैयार किया गया था और इन कीटों को भगाने के लिये कीटनाशकों का गहन छिड़काव किया जा रहा है। लेकिन यह वृहत स्तर पर नही है। ◆मुख्यतः टिड्डी एक प्रकार के उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है जो विभिन्न प्रकार की फसलों को नुकसान पहुँचाती हैं। ●टिड्डियों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डियाँ (Schistocerca gregaria) सबसे खतरनाक और विनाशकारी मानी जाती हैं। ●आमतौर पर जुलाई-अक्तू

हमारा किसान हमारा स्वाभिमान

सब अपनी कहते सुनते रहे,  बस बिना मुड़े चलते गए, कहीं वोट की, कहीं जात पांत की, इनके नाम पर राजनीति हो गयी बहुत, कोई उनको भी तो पूछ लो, जो, रात दिन खेत में जलते रहे। क्या ये सिपाही से कम है, ये अन्नदाता। हमारे अन्नदाता। #salute_to_indian_farmers https://t.co/GelWGieSTW