- मैं गाँव हूँ मैं वहीं गाँव हूँ जिसपर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे। मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है ! मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर असभ्यता और जाहिल गवाँर का भी आरोप है ! ! ! ! हाँ, मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़कर दूर बड़े-बड़े शहरों में चले गए। जब मेरे बच्चे मुझे छोड़कर जाते हैं मैं रात भर सिसक सिसक कर रोता हूँ, फिरभी मरा नही। मन में एक आश लिए आज भी निर्निमेष पलकों से बांट जोहता हूँ शायद मेरे बच्चे आ जायँ, देखने की ललक में सोता भी नहीं हूँ लेकिन हाय! जो जहाँ गया वहीं का हो गया। मैं पूछना चाहता हूँ अपने उन सभी बच्चों से क्या मेरी इस दुर्दशा के जिम्मेदार तुम नहीं हो? अरे मैंने तो तुम्हे कमाने के लिए शहर भेजा था और तुम मुझे छोड़ शहर के ही हो गए। मेरा हक कहाँ है? क्या तुम्हारी कमाई से मुझे घर, मकान, बड़ा स्कूल, कालेज, इन्स्टीट्यूट, अस्पताल, आदि बनाने का अधिकार नहीं है? ये अधिकार मात्र शहर को ही क्यों? जब सारी कमाई शहर में दे दे रहे हो तो मैं कहाँ जाऊँ? मुझे मे
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